आखिर मंत्री क्यों मरा | विक्रम और बेताल की कहानी भाग – 12 | Vikram Aur Betal Hindi Stories

आखिर मंत्री क्यों मरा | विक्रम और बेताल की कहानी भाग – 12 | Vikram Aur Betal Hindi Stories


एक समय की बात है, पुण्यपुर नामक राज्य में यशकेतु नाम का राजा राज करते थे। उनका सत्यमणि नाम का बड़ा ही समझदार, कर्मठ और चतुर मंत्री था परन्तु राजा बड़ा विलासी था। राज्य का सारा बोझ मंत्री पर डालकर वह भोग में पड़ गया।

एक दिन की बात है राजा के दरबार में एक चित्रकार आया। उसने एक से बढ़कर एक सुंदर और आकर्षक चित्र राजा को दिखाये जिसे देखकर राजा उन चित्रों पर मुग्ध हो गया। उसने चित्रकार के कला पर प्रसन्न होकर उसे सोने से तौल दिया और ढ़ेर सारा ईनाम दिया। सभी दरबारी “कला पारखी राजा की जय-जयकार करने लगे” लेकिन मंत्री को बहुत दु:ख हुआ।

राजा के दानशीलता और भोग-विलासिता में अधिक व्यय के फलस्वरूप राजकोष का धन दिन-प्रतिदिन घटने लगा। प्रजा राजा से निराश हो गयी। मंत्री ने जब देखा कि राजा के साथ सब जगह उसकी भी निन्दा होती है तो उसका मन कुछ उचट गया। उसने मन को शांत करने के लिए तीर्थयात्रा पर जाने की सोची और राजा से आज्ञा लेकर वह तीर्थ-यात्रा पर चला गया।

एक दिन सत्यमणि घूमते हुए समुद्र तट पर जा पहुँचा और वहीं ठहर गया। आधी रात के समय वह क्या देखता है की समुद्र से एक सुंदर वृक्ष निकल रहा है, वह वृक्ष अद्भुत रोशनी से जगमगा रहा था। उस पर हीरे-मोती के फल लगे हुए थे। उसकी मोटी-मोटी शाखाओं पर रत्नों से जुड़ा एक पलंग बिछा था। उस पर एक रूपवती कन्या बैठी वीणा बजा रही थी। इस दिव्य चमत्कार को देखकर उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा। थोड़ी देर बाद वह रूपवती कन्या गायब हो गयी। पेड़ भी नहीं रहा।

मंत्री बड़ा चकित हुआ।

मंत्री ने अपने नगर में लौटकर राजा को सारा हाल कह सुनाया। इस बीच इतने दिनों तक राज्य को चला कर राजा सुधर गया था और उसने विलासिता छोड़ दी थी। मंत्री की कहानी सुनकर राजा उस सुन्दरी को पाने के लिए बेचैन हो उठा और राज्य का सारा काम मंत्री को सौंपकर तपस्वी का भेष बनाकर वहीं पहुँचा।

पहुँचने पर उसे वही वृक्ष और वीणा बजाती कन्या दिखाई दी। राजा जब तैरकर उस कन्या के पास पहुँचा तो कन्या ने राजा से पूछा, “तुम कौन हो?”

राजा ने अपना परिचय दे दिया और उससे विवाह का प्रस्ताव रखा। कन्या बोली, “मैं गंधर्व विद्याधर की कन्या हूँ। मृगांकवती मेरा नाम है। आप जैसे गुणवान और शक्तिशाली राजा से विवाह करके मैं स्वयं को भाग्यशाली समझूंगी लेकिन मेरी एक शर्त हैं।

राजा ने उससे शर्त पूछा-

कन्या ने यह शर्त रखी कि “हर महीने के शुक्लपक्ष की चतुर्दशी के रात को एक राक्षस उसे अपने वश में कर लेता हैं और निगल जाता हैं। आपको पहले उस राक्षस को खत्म करना होगा”। राजा ने यह शर्त मान ली।

इसके बाद शुक्लपक्ष की चतुर्दशी आयी तो राजा छिपकर उस राक्षस का इंतजार करने लगे। अचानक राजा ने देखा कि एक राक्षस निकला और उसने मृगांकवती को निगल लिया। राजा को बड़ा गुस्सा आया और उसने अपने दुधारी तलवार से राक्षस का सिर काट डाला। मृगांकवती उसके पेट से जीवित निकल आयी।

राजा ने उससे पूछा कि यह क्या माजरा है तो उसने कहा, “महाराज, मेरे पिता मेरे बिना भोजन नहीं करते थे। मैं अष्टमी और चतुदर्शी के दिन शिव पूजा यहाँ करने आती थी। एक दिन पूजा में मुझे बहुत देर हो गयी। पिता को भूखा रहना पड़ा। देर से जब मैं घर लौटी तो उन्होंने गुस्से में मुझे शाप दे दिया कि चतुर्दशी के दिन जब मैं पूजन के लिए आया करूँगी तो एक राक्षस मुझे निगल जाया करेगा और मैं उसका पेट चीरकर निकला करूँगी।

जब मैंने उनसे शाप छुड़ाने के लिए बहुत अनुनय की तो वह बोले, “जब पुण्यपुर देश का राजा तेरा पति बनना चाहेगा और तुझे राक्षस से निगली जाते देखेगा तो वह राक्षस को मार देगा। तब तेरे शाप का अन्त होगा।”

इसके बाद राजा उसे लेकर नगर में आया तथा अपने मंत्री को धूमधाम से विवाह की तैयारी करवाने को कहा। उसने सभी देशों के राजाओं को विशेष आमंत्रण पत्र भेजें, बड़े-बड़े यज्ञों का आयोजन की तैयारी करने को कहा और देश के सुप्रसिद्ध कलाकारों, नृत्यांगनाओं, नाटककारों, संगीतकारों इत्यादि को सम्मान पूर्वक बुलाने को कहा तथा उत्तम विश्राम गृह बनवाने को कहा साथ ही रानी के लिये एक नया महल बनाने को कहा।

मंत्री ने जब यह सब देखा-सुना तो उसका हृदय फट गया। और वह स्वर्ग सिधार गया।

इतना कहकर बेताल ने पूछा, “हे राजन्! यह बताओ कि स्वामी की इतनी खुशी के समय उसे ऐसा क्या दुख हुआ कि मंत्री का हृदय फट गया, और वह मर गया?”

विक्रम ने कहा, “सुन बेताल, मंत्री का ह्रदय इसलिये फटा कि उसने सोचा राजा फिर स्त्री के चक्कर में पड़ गया और उसके भोग-विलास के कारण फिर राज्य की दुर्दशा होगी। अच्छा होता ये बात मैं राजा को न बताता।”

विक्रम का इतना कहना था कि बेताल बोला राजन् तुम्हें पहली शर्त याद है न लो अब मैं चला और बेताल फिर पेड़ पर जा लटका। राजा विक्रम तेजी से उसके पीछे चल पड़े।


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